पुराना शिगूफा है कांग्रेस का दलित कार्ड, मतलब निकल गया तो, पहचान.......!

दलित कार्ड कांग्रेस का पुराना शिगूफा है। चरनजीत सिंह चन्नी को पंजाब सरकार की कमांड थमा, कांग्रेस ने पहली मर्तबा दलित कार्ड का इस्तेमाल नहीं किया है। कांग्रेस 5 दशकों से ज्यादा से दलित कार्ड खेलती आई है। कांग्रेस जब भी मजबूर हुई। उसने दलित कार्ड खेला है। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस दलितों की आपनी पारंपरिक जमीन इसलिए खिसका बैठी है क्योंकि दिल से कभी भी कांग्रेस ने दलित को तरजीह नहीं दी।

इसकी एक नहीं अनेको उदाहरण हैं। बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान में कांग्रेस दलित व्यक्ति को सीएम के औहदे से नवाज कर बाद में हाशिये पर धकेल चुकी है। भोला पासवान शास्त्री, राम सुंदर दास, दमोदरम संजीवैया, सुशील कुमार छिंदे औऱ जगननाथ पहाडिया यह सब वह शख्स हैं। जिन्हें कांग्रेस ने वक्त की मार के साथ सीएम के औहदे दिए। लेकिन इनमें से कोई भी शख्स साल भर से ज्यादा सीएम की गद्दी पर विराजमान नहीं रहा।

कांग्रेस के अलावा बिहार के सीएम नीतिश कुमार ने भी 7 बरस पहले दलित कार्ड खेल जीतन राम माझी को सीएम बनाया। लेकिन आज माझी नीतिश कुमार की पार्टी से भी बाहर हैं। हां, इन सब में से मायावती भाग्यशाली है। बहन जी चार मर्तबा यूपी के सीएम की गद्दी पर विराजमान हुई। लेकिन सिर्फ एक ही बार कार्यकाल (2007 से 2012) पूरा कर सकी। वह भी पूर्ण बहुमत की वजह से। पहले की तीन पारियों में उनकी गद्दी इधर-उधर ही झूलती रही।

बहन मायावती कांग्रेस के रहमो-करम से सीएम नहीं बनी थी। समाजवादी पार्टी और बीजेपी की मजबूरी के चलते उनके नसीब में सीएम का औहदा आया था। वह भी मान्यवर बाबू कांशी राम की जिद के चलते। मान्यवर बाबू कांशी राम बीएसपी बनाने के लिए गांव-गांव, गली-गली साइकिल पर नहीं घूमे होते तो कभी भी पार्टी वजूद में नहीं आती। यह मान्यवर बाबू कांशी राम ही थे, जिन्होंने जो कहा कर दिखाया। वरना स्वर्णों के वर्चस्व वाली कांग्रेस और बीजेपी क्या कभी किसी दलित को सहन करती? 1984 से आपना राजनीतिक सफ़रनामा शुरु करने वाली बीजेपी ने 90 के दशक में सूबाई सरकारें बनानी शुरु की थीं। यूपी, राजस्थान और हिमाचल में बीजेपी के सरकारें कल्याण सिंह (ओबीसी) भैरो सिंह शेखावत (स्वर्ण) और शांता कुमार (स्वर्ण) के नेतृत्व में बनी। इसके बाद मध्य प्रदेश में सुंदर लाल पटवा (स्वर्ण) के नेतृत्व में पार्टी ने सत्ता संभाली।

कांग्रेस ने तो कमजोर पडने पर दलित कार्ड खेला। बीजेपी ने आपने तीन दशकों से ज्यादा के सियासी सफ़र में एक बार भी दलित को सीएम का औहदा सौंपना गंवारा नहीं समझा। अब बीजेपी वाले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का उदाहरण दे सकते हैं। लेकिन कांग्रेस ने भी तो दलित केआर नारायनण को राष्ट्रपति बना दलितों को वोट बैंक बनाने के अलावा कुछ नहीं सोचा था। कांग्रेस के रास्ते पर चलते हुए ही अटल बिहारी बाजपेयी मान्यवर बाबू कांशी राम को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे। ताकि बीएसपी के पौधे को पेड बनने से रोका जा सके। लेकिन मान्यवर बाबू कांशी राम पीएम की कुर्सी के लिए अड गए। इससे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी बगले झांकने को मजबूर हो गई।

खैर, कांग्रेस के दलित चरनजीत सिंह चन्नी को पंजाब का सरदार बना देने से सियासतदानों में खलबली जरुर है। बहन मायावती ने तो प्रेस काफ्रेंस कर बता दिया कि कांग्रेस का मौजूदा दौर में यह मास्टर स्ट्रोक है। लेकिन ऐसा नहीं है। चरनजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी से पहले ही कांग्रेस ने आपने इरादे जता दिए थे कि सिर्फ वक्त की मजबूरी ने उसे चरनजीत सिंह चन्नी को सीएम का औहदा देना पडा। चुनाव के बाद तो यह औहदा जट्ट नवजोत सिंह सिद्धू के पास ही जाएगा। मतलब सिर्फ दलित वोट से चुनाव जीतना कांग्रेस का इरादा।

पार्टी के महासचिव और पंजाब के इंचार्ज हरीश रावत ने कैमरा के सामने माइक पर साफ कहा कि नवजोत सिद्धू ज्यादा पॉपुलर हैं। सिद्धू की कांग्रेस को देन क्या है ? यह कहने के लिए हरीश रावत के पास कुछ नहीं था। जब हरीश रावत के इस बयान पर बवाल मचा तो कांग्रेस को सफाई देने पर मजबूर होना पडा। इसी से अंदाजा लगा लें कि कांग्रेस दलित के लिए कितनी इमानदार है। चरनजीत सिंह चन्नी के नसीब में सीएम की गद्दी कैसे आई। यह भी कल दिलचस्प नहीं है। महाराजा अमरेंदर सिंह को सत्ता से बेदखल करने के बाद, सच्चाई में कांग्रेस नवजोत सिद्धू को नया सीएम बनान चाहती थी।

लेकिन महाराज अमरेंदर सिंह अड गए। हाईवोल्टेज सियासी ड्रामा हुआ और सिद्धू सीएम की गद्दी से बेहद दूर हो गए। कांग्रेस फिर सुखजिंदर सिंह रंधावा पर आ कर टिक गई। इससे कांग्रेस जट्ट वोटों को समेटने की कोशिश में थी। लेकिन जट्ट तो अकालियों का पारंपरिक वोट बैंक है। इसलिए असेंबली चुनाव से पहले ही अकालियों ने सत्ता मिलने पर दलित को डिप्टी सीएम बनाने का ऐलान कर रखा है। लेकिन कांग्रेस आलाकमान की समझ में यह बात नहीं थी। वह तो अकालियों से कांग्रेसी बने मनप्रीत सिंह बादल ने राहुल गांधी को समझाया कि दलित को सीएम बनाने के इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता।

बात राहुल गांधी की समझ में आ गए और चरनजीत सिंह चन्नी पंजाब सरकार के नए सरदार बनने में कामयाब हो गए। मान्यवर बाबू कांशी राम के शुरु किए संघर्ष के चलते ही चरनजीत सिंह चन्नी को सेम की सुक्री नसीब हुई है। दलित चिंतक और विद्धवान डॉ. सिद्धार्थ लिखते हैं कि अगर मान्यवर बाबू कांशी राम ने दलितों के लिए आजादी के ढी दशक बाद आंदोलन न शुरु किया होता तो समाज का दबा-कुचला वर्ग यहां तक नहीं पहुंच सकता था। इसलिए दलित आंदोलन जारी रहने से ही सत्ता का द्वार खुल सकता है।

-मनोज नैय्यर

journalistmanojnayyar@gmail.com   

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